एक सुनहरे शहर की सुनहरी सी यादें,
वोह शाम को उडती पतंगों के नज़ारे,
लहराते सुरमई झिलमिल किनारे,
चेह्चेहाती चिड़ियों से गूंजते नीम की भरी भरी डारें,
चाय- पकौडों के लिए माँ की प्यार भरी गुहारें,
वोह निशातगंज की गलियों में घंटों खरीददारी;
न समझ आने पे पकड़ी अमीनाबाद की सवारी,
वोह चौक की उम्दा चिकनकारी,
वोह दस रुपये के रिक्शे की शाही सवारी,
वोह प्रकाश कुल्फी के मस्त कुल्हड़,
टुंडे कबाब के ढेरों प्रशंसक,
नजाकत,नफासत, से लबरेज ज़बान,
मेरे लखनऊ आज भी तहज़ीब तेरी शान,
कहाँ तक मैं बयां करून तेरी बातें,
एक सुनहरे शहर की सुनहरी सी यादें.
- अपर्णा वाजपेयी शुक्ल
dedicated to my ancestral city....Lucknow!
ReplyDelete"एक सुनहरे शहर की सुनहरी सी यादें"
ReplyDeleteबहुत सुंदर
dhanyavad shreeman!
ReplyDeleteयह कविता तुम्हारा जुड़ाव दर्शाती है तुम्हारे अपने शहर लखनऊ से ..... बहुत सुन्दर कविता लिखी है .. .Direct दिल से .... मैंने भी इसी तरह एक कविता मेरे शहर जयपुर पर लिखी है ... मेरे ब्लॉग पर आओ ... http://unbeatableajay.blogspot.com/
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखती है आप ।
ReplyDeleteअपर्णा जी ये एक संयोग है कि हम भी आपके साथ अपना नाम और काम दोनो ही शेयर करते है ।
आपके पडोस शहर यानी कि कानपुर से है
आज आपके ब्लाग पर आ कर खुशी हुयी
अपर्णा त्रिपाठी
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
sanjay bhaskarji aur ajay ji ka bahut bahut dhanyavaad!
ReplyDeleteGood one aparna , when your book is being published on indian social reforms.
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