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Monday, May 23, 2011

बोझल बंधन

बंधन जो बोझ बनें,
वो मन के रिश्ते नहीं,
एक व्यवहार हैं, एक व्यापार हैं,
जिनकी बुनियाद ही स्वार्थ है,
नीव में ईर्ष्या का हलाहल है,
वो मन के रिश्ते नहीं ,
एक गुबार हैं,
जो कभी कटाक्ष, कभी कड़वाहट ,
कभी व्यंग्य में ही प्रगट होते हैं ,
वे रिश्ते बड़े बेमानी और बेमतलब होते हैं,
मुखौटों पर व्यर्थ की मुस्कान के ढोंग,
में जो प्रवीण होते हैं,
वे रिश्ते बड़े निर्जीव और नीरस होते हैं,
जो जीवन से प्राण खींच लेते हैं,
वे रिश्ते बड़े संगीन होते हैं,
वे रिश्ते बड़े संगीन होते हैं,
वे रिश्ते बड़े संगीन होते हैं.
- अपर्णा वाजपेयी शुक्ल