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Saturday, February 5, 2011

मन

भावनाओं के भंवर में ,
डूबता -उतरता मन,
आशाओं और निराशाओं से,
जूझता- हारता-जीतता-संघर्षरत मन,
कभी आकुल , कभी स्थिर,
सहमत घबराता मन,
जीवन पथ के कन्तंकों से बिंधा हुआ,
आंसुओं के गीलेपन से गला हुआ,
तम के जंजाल को काटने को व्याकुल मन।
आस्था की ज्योति को संबल बना,
परमात्मा की अनुभूति को संगिनी बना,
अलौकिक ज्योति से फिर हुआ मौन से मुखर,
शरणागत की वीणा ने फिर दिए मधुर स्वर,
आयी जीवन में आह्लाद की लहर, आशाओं के स्वर,
आह्लाद की लहर, आशाओं के स्वर,
आह्लाद की लहर, आशाओं के स्वर.
- अपर्णा शुक्ल