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Wednesday, December 28, 2011

माँ

शब्द कम हैं ,

भाव अपरिमित, माँ,

क्या लिखूं आप पर मैं?

लेखनी गिर गिर जाती है,

न छंद , न लय, न अलंकार सूझते हैं,

जब आपकी छवि सामने आती है.

भावनाएं ही उमडती हैं,माँ,

सौम्य, संतुलित निर्मलता

ही पाई हमेशा आपमें ,

सादगी और सरलता आपके हास्य में,

आवरण सुरक्षा का आज भी,

अनुभव होता है आस पास, माँ,

साहस और सहनशक्ति का सबक

आपके मार्ग से,माँ,

मन के कोने आपके स्नेह

और आशीर्वाद से भीने रहते हैं,

कि आपने ही मज़बूत रहने को कहा था.

-डॉ. अपर्णा शुक्ल

Sunday, December 18, 2011

मित्र

मित्र तुम बहुत याद आते हो,
बचपन की उन यादों में ,
भोली प्यारी मुस्कानों में,
एक छवि तुम्हारी प्यारी सी,
अनोखी, सबसे न्यारी सी,
मीत, सखी, मन के बंधन,
कितना लंबा यूँ साथ हुआ,
स्नेह भरे पथ के दीपक,
अपनी ज्योति से आलोकित करती होगी कई जीवन,
तुम्हारे प्रकाश स्पर्श की स्मृतियों
के गलियारों से,
ध्वनि अभी भी आती है,
मीत तुम बहुत याद आती हो.
-डॉ. अपर्णा शुक्ल