शब्द कम हैं ,
भाव अपरिमित, माँ,
क्या लिखूं आप पर मैं?
लेखनी गिर गिर जाती है,
न छंद , न लय, न अलंकार सूझते हैं,
जब आपकी छवि सामने आती है.
भावनाएं ही उमडती हैं,माँ,
सौम्य, संतुलित निर्मलता
ही पाई हमेशा आपमें ,
सादगी और सरलता आपके हास्य में,
आवरण सुरक्षा का आज भी,
अनुभव होता है आस पास, माँ,
साहस और सहनशक्ति का सबक
आपके मार्ग से,माँ,
मन के कोने आपके स्नेह
और आशीर्वाद से भीने रहते हैं,
कि आपने ही मज़बूत रहने को कहा था.
-डॉ. अपर्णा शुक्ल
माँ का बस नमन किया जा सकता हैं
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