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Monday, May 23, 2011

बोझल बंधन

बंधन जो बोझ बनें,
वो मन के रिश्ते नहीं,
एक व्यवहार हैं, एक व्यापार हैं,
जिनकी बुनियाद ही स्वार्थ है,
नीव में ईर्ष्या का हलाहल है,
वो मन के रिश्ते नहीं ,
एक गुबार हैं,
जो कभी कटाक्ष, कभी कड़वाहट ,
कभी व्यंग्य में ही प्रगट होते हैं ,
वे रिश्ते बड़े बेमानी और बेमतलब होते हैं,
मुखौटों पर व्यर्थ की मुस्कान के ढोंग,
में जो प्रवीण होते हैं,
वे रिश्ते बड़े निर्जीव और नीरस होते हैं,
जो जीवन से प्राण खींच लेते हैं,
वे रिश्ते बड़े संगीन होते हैं,
वे रिश्ते बड़े संगीन होते हैं,
वे रिश्ते बड़े संगीन होते हैं.
- अपर्णा वाजपेयी शुक्ल

8 comments:

  1. जीवन के कटु यथार्थ का आभास है ये बोझल बंधन । शुभकामनाएँ...

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  2. डेशबोर्ड में सेटिंग सिलेक्ट करें, सेटिंग में फिर नीचे वाली लाईन की टिप्पणियां सिलेक्ट करें, टिप्पणियों में फिर 10वें नंबर पर "टिप्पणियों के लिये शब्द पुष्टकरण दिखाएँ" में हाँ, नहीं में 'नहीं' को सिलेक्ट करके नीचे 'सेटिंग सहेजें' को क्लिक करके वापस डेशबोर्ड पर आ जाएँ । आपके ब्लाग से टिप्पणियों में शब्द पुष्टिकरण की बाध्यता समाप्त हो जाएगी और पाठकों को टिप्पणी देने में आसानी रहेगी । धन्यवाद...

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  3. पाठकों के प्रोत्साहन से ही प्रेरणा जागृत होती है.सभी पढ़ने वालों का विनम्र और हार्दिक धन्यवाद.इसके अतिरिक्त जो मुझसे बड़े हैं और उचित दिशा निर्देश देते रहते हैं उन्हें शत शत नमन.

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  4. aapke jitni saras Hindi me likhna to hume kabhi bhi nahi aata tha isliye angrezi me hi comment kar rahe hain - sometimes the simplest emotions and the hardest to express and you have expressed the truth behind the most nagging thoughts so beautifully! Ati saral, sundar aur satya!

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  5. Thanks buds....ur comment is v special for me!

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  6. wonderful words by a wonderful poet....

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