मैं
दुनिया के शोर शराबे में,
एक संभलती सी आवाज़ हूँ मैं.
बड़े बड़े नामों में अपनी पहचान
बनाने का प्रयास हूँ मैं.
इन्सानियत में जो जीवित है अभी
वो जज़्बात हूँ मैं.
नजाकत से लबरेज है जो
वो ज़बाने-अंदाज़ हूँ मैं.
बंदगी में ही जिसे महसूस किया जा सके
वो एहसास हूँ मैं.
पाकीजगी है जिसमें बेहद
सुबह की वो नमाज़ हूँ मैं.
- अपर्णा शुक्ल
मन से एक आवाज़ निकली जिसे शब्दों का रूप देकर कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर दिया. ये "मैं" मैं ही नहीं हूँ , हर वो व्यक्ति है जो इस जीवन को सकारात्मकता से देखता है और स्वयं की कद्र करता है!
ReplyDeletebahut sundar..dil ko chu gayi ye rachna...
ReplyDeleteaapki kriti main "oj aur aatm vishavas" hai. ek bahut achci rachna .
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteशुभकामनाये. जारी रहिये!
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मैं शादी क्यों करूं...? Its All About Marriage DEBATE @ उल्टा तीर
अमितजी बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
ReplyDeleteयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.,
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
dhanyavad harish ji.
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